अक्सर ये होता है,
लिखने वाला लिखता अपने दिल कि है,
चाहे उसके अनुभव हो, या उसने कहीं देखा हो,
चाहे उसके मन कि पीड़ा हो, ख़ुशी हो,
या जीवन से जुड़ा कोई गहरा सच।
लोग समझते वही हैं, जो वो समझना चाहते हैं।
वो जरुरी नहीं समझते,
उस लिखे हुए एहसास को समझना।
उन्हें जरुरी ये भी नहीं लगता,
लिखे हुए शब्दों में,
सामने वाले ने अपने जज्बात बयां कर रखा है।
कुछ लोग पढ़ते हि इसलिए हैं,
ताकि वो बेवजह के तर्क कर सकें,
जहाँ इसकी कोई जरुरत तक नहीं।
जहाँ स्पस्टता से चीजे उल्लेख हो,
वहाँ बहस कि क्या कोई गूञाइश् है भी ??
पर कुछ लोगों को कटाक्ष करना,
किसी पर हंसना,
किसी के लेखनी का उपहास उड़ाना,
आसान जो लगता है।
हमने तो एक बात जानी है,
जीवन तो सीखने का नाम है,
जिस से जो भी मिला सीखते गए,
और आगे बढ़ते गए,
खुद को काविल किया,
आत्मसम्मान से जिये।
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