रावण कहता है

हे राम प्रिय हमारे लंका में अब पधारो
कर के विनाश निशिचर हमको भी जग से तारों
हे राम प्रिय हमारे
भटकता फिरू मै कब तक निशचर की योनि में ही
जो मिला है साप मुनि का उससे मुझे उबारों
अवतार लेकर आए प्रभु राम तुम यहां पर
पूजे ये दुनिया सारी तुझको ही अब यहां पर
उद्धार करके मेरा शिव में मुझे मिलाओ
हे राम प्रिय हमारे
स्थापना जो शिव की तुमने वहा कराई
आशीष दे के मैने तेरी राह सुगम बनाई
करके विजय यहां पर दुनिया को तुम दिखाओ
हो संदेह ना किसी को ऊपर कभी तुम्हारे
कामों को तेरे देखें अब तो यह दुनिया सारी
जीवन में जो भी होगा पथभ्रष्ट अब यहां पर
ऐसा ही हाल होगा सबको यहां बताओ
हे राम प्रिय हमारे
आरोप मुझ पर गढते सीता हरी है मैने
साधु का रूप लेकर सीता छली है मैंने
माता है वो हमारी हम यह भी जानते हैं
रखी पवित्र सीता ले लो परीक्षा चाहे
हे राम प्रिय हमारे
बैठा हूं कब से तेरी ही राह देखता मै
आकर के अब तो मुझको अपना दरस दिखाओ
उद्धार करके जीवन पावन करो हमारा
पापों का नाश करके मुझे अपने में मिलाओ
हे राम प्रिय हमारे लंका में अब पधारो

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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