शहर से घटा बिखरता हुआ
घूम रहा चंचलियों में
आज भी भटक रहा है मेरा दिल
रायपुर की गलियों में ।
छत्तीसगढ़ की राजधानी में
सूरज का तेज निखरता है
दिव्य वायु से सांसों में
खुशबू फूलो का बहता है ।
ढूंढ रहा है अंतरात्मा मेरा
शहर के गुमसुम पहेलियों में
आज भी भटक रहा है मेरा दिल
रायपुर की गलियों में ।
ये शहर जितना विशाल है ,
उतना ही उसका मुस्कान है ,
सिकागो जैसा चकाचौंध दिखता है
अंबर में खुला आसमान है ।
खवाइसें आज भी जीवित है
मेरे आंखे और हथेलियों में
आज भी भटक रहा है मेरा दिल
रायपुर की गलियों में ।।
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