एक ख़त लिखना था,
तुम्हारी यादों को l
जो, भूल सी गयी,
कई सालों से इस दिल का पता l
और करके तन्हा,
दे दी है इस दिल को सजा ll
पहले, महीनें में ही,
आ जाया करती थीं कम से कम,
एक बार ही सही,
कभी हिचकी बन,
तो कभी पोस्टकार्ड ,
तो कभी अंतर्देशीय पत्र बन l
ठंड में, घने कोहरे के बीच
कभी उभर आता था , तुम्हारा चेहरा l
तो कभी, गर्मियों में ,
छत पर पड़ जाता था,
यादों का खूबसूरत बसेरा ll
बरसात में संदेशे चले जाते थे,
कागज़ की नाव में l
तो बसंत में,
फूल बन,
महक जाते थे,
किताबों की छाँव में l
शायद, अब
डाकिया बाबू तक
कोई चिट्ठी नहीं पहुँचती !
या आपकी उँगलियाँ,
कागज़ पर नहीं चहकती!
या अब यादों के फूलों से,
खुश्बू खो चुकी है !
या जागती रातें,
दिन के उजालों में सो चुकी हैं !
या तुमने कैद कर लिया है,
यादों के चमकते चाँद को !
या तुमने सुला लिया है,
ख़्वाबों के खूबसूरत एहसास को !
क्योंकि अब यादें नहीं आती हैं,
ख़ाली शामों में l
केसरिया, गौधुली वाली
तमाम बातें नहीं आती हैं l
आती हैं तो अक्सर,
गुमशुदगी वाली खामोशियाँ l
भीड़ में,
अकेला महसूस करवाने वाली तन्हाईयाँ ll
अगर तुम तक मेरी बात पहुँच सके,
कोई यार दोस्त ये बात समझ सके,
तो भिजवा देना,
पुरानी यादों में अपना नया पता l
मैं वहीं उसी मोड़ पर,
डाकिए के इंतज़ार में हूँ खड़ा ll