मैंने तेरे लिए

मैंने तेरे लिए है जहां छोड़ दी,

जहां के लिए छोड़ तुम हो रहे।

कैसे कह दूं सही कौन है इस जगह

तुमको पाने की जिद ही थी बेवजह

अब क्या रस्मे निभाए,कसम तोड़ दी

अपने हुए पराए और स्वप्न तोड़ दी

मैने तेरे लिए है जहां छोड़ दी

जहां के लिए छोड़ तुम हो रहे।

मैं इश्क की आग में थी जलती रही

तुम बादल बनकर गरजते रहे,

मौसम सुहाना था दिखता रहा

हम बदली देखकर बस मचलते रहे।

मैने तेरे …..

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

2 Comments

  • Alok March 14, 2023

    बहुत बहुत आभार

    • डॉ दिवाकर चौधरी March 15, 2023

      आपका स्वागत है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • कुमार आलोक

    मूल निवास: ग्राम पंडरी सविता,गोंडा, कार्य क्षेत्र: बैंकर. Copyright@कुमार आलोक/इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

Total View
error: Content is protected !!