मैं तो गांवो में ही रह कर गांव से हरदम प्यार किया
प्रकृति प्रदत हवा जो मिलती उसी में हरदम सांस लिया
नहीं तीव्रतम चाल मै देखी चकाचौंध से दूर रहा
बंगला सुंदर नहीं है मेरा कच्चा सा मकान रहा
ना देखा पारक का कोना फूलों की क्यारी देखी हैं
घर के चारों ओर महकती हमने फुलवारी देखी हैं
देखी नहीं चमकती सड़कें गली अंधेरी देखी हैं
देखे नहीं शहर के कांटे गांव की कलियां देखी हैं
सुखद हमेशा बीता जीवन सपनों का संसार मिला
किसी के हिस्से शहर में आए हिस्से में मेरे गांव मिला
बिल्डिंग की छाया नहीं मिली वृक्षों का हरदम छांव मिला
नहीं भटकना अब शहरों में सुंदर सा मुझे गांव मिला
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