“मेरे आदर्श शिक्षक डॉ बसन्त कुमार झा”

“मेरे आदर्श शिक्षक डॉ बसन्त कुमार झा”

“मेरे आदर्श शिक्षक डॉ बसन्त कुमार झा”

आओ सुनाऊं, तुम्हे एक कहानी ,

बी.एड के बच्चों को दिलों में:

तस्वीर है जिसकी जानी-मानी ॥

और कोई नहीं है, वो ऐसे शक्स,

‌‌‌‌‌ आदर्शों व नियमों के सख्त

सभी जानते हैं उन्हें,

है वो अनुशासन के भक्त ।

उनके हैं सिध्दांत अलग,

संस्कार अलग, विचार अलग||

” अकेला हूँ. अकेला था, अकेला ही कर जाऊँगा।

अगर आया हूंँ इस दुनिया मे तों,

‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ न मैं बदलुंगा पर तुम्हें बदल के जाऊंगा”

अच्छा कितना भी हो जाए सभी,

सभी की कभी खूब निकालते हैं।

कम हो कम आँको खुद को,

ये सभी को बतलाते हैं |

हम अगर न चले नियमों से ,

बार-बार वो समझाते हैं।

गलती करे छोटे- बड़े यदि तों,

आलोचनाएँ भी वो कर जाते हैं।

कभी गुरू, कभी पिता, कभी छात्र वो बन जाते हैं।

कभी – कभी गीतों को गाकर सबका दिल लुभाते हैं।

जब भी कभी क्लास वो लेते, टॉपिक से बात उठाते हैं,

उससे जुड़ी दुनिया भर,की बातें वो कर जाते हैं।

तरह- तरह के उदाहरण देते, न लिखते, ना लिखवाते हैं|

समझो और समझाना,

बस यही सिद्धांत सिखाते हैं।

छोड़ो चर्चा इन बातों की ,

रहस्यमय बातें अब बतलाती हूँ,

जब कभी मैं घर को जाती,

घर के सभी अपनों को पाती,

सब के साथ बातों-बातों में,

खुब शिकायतें ,खूब बुराईयाँ मैं उनकी कर जाती हूँ ।

मेरे बातों को सुनकर,मेरे पिता कहते हैं अक्सर|

” बातें समझ में आती है इनकी पर अफसोस यही होता है,

आज- कल की दुनिया में, “आदर्श और नियम ”

ये सब कहाँ होता हैं ।

“अनुशासन में रहने वालों की लोग खुब बड़ाईया करते हैं।

पर सच तो यही हैं पीठ पीछे, मजाक के पात्र बना जाते हैं|”

कभी मुझे मेरे पिता की, बातें सच लगती हैं

पर मन को समझा कर , उनको

समझाने की,चेष्टा भी मैं, करती हूँ।

कैसे हैं ये हमारे शिक्षक,

‌‌‌अब हम ये जान चुके हैं।

बी. एड. के अधिकांश बच्चे,

अब इनको ही आदर्श मान चुके हैं||

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रचनाकार

Author

  • Dr. Shivangi shri

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