मुस्कुराने से भला क्या दर्द कम हो जाएगा ।

मुस्कुराने से भला क्या दर्द कम हो जाएगा ।

देखना इन कहकहों का शोर नम हो जाएगा ।

मौत से डरते हैं हम तो इक सबब इसका भी है ।

मर गये तो इस जहां में फिर जनम हो जाएगा ।

सर पटक कर उम्र भर रोयी नदी ये सोच कर ।

कि सख़्त पत्थर का कलेजा कुछ नरम हो जाएगा ।

हादसे पूजाघरों में भी बहुत होने लगे ।

अब तो सजदे में किसी दिन सर क़लम हो जाएगा ।

आग जंगल की मुसलसल फैलती ही जा रही ।

आख़िरी पत्ता बचाना भी धरम हो जाएगा

ज़ख़्म सब नासूर बन कर रिस रहे हैं क्या फ़िक़्र ।

ज़ख़्म जो तुमने दिया है वो मरहम हो जाएगा ।

दोस्तों की दोस्ती औ दुश्मनी मत पूछिये ।

बेवजह लम्हात का लोहा गरम हो जाएगा ।

अपनी तारीफ़ें न अपने आप से करना कभी ।

आपका दर्पण भी इक दिन बेशरम हो जाएगा ।

परतराशी का ये कारोबार गर चलता रहा ।

वक़्त का ख़ामोश ख़ंजर बेरहम हो जाएगा ।

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रचनाकार

Author

  • कमलेश श्रीवास्तव

    कमलेश श्रीवास्तव पिता-श्री शिवचरण श्रीवास्तव माता-श्रीमती गीता देवी श्रीवास्तव जन्म तिथि- 14 अगस्त 1960,श्री कृष्ण जन्माष्टमी जन्म स्थान- सिरोज, जिला विदिशा, म.प्र. शिक्षा-एम.एससी.(रसायन शास्त्र) साहित्यिक गतिविधियाँ- आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से रचनाओं का प्रसारण विभिन्न पत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हिन्दी उर्दू काव्य मंचों पर काव्य-पाठ| कृतियाँ/प्रकाशन- नवगीत संग्रह समांतर-3, गज़ल संग्रह "वक्त के सैलाब में" एवं गज़ल संग्रह "क्या मुश्किल है" का प्रकाशन सम्प्रति- शाखा प्रबंधक एम.पी. वेअर हाऊसिंग एण्ड लॉजिस्टिक्स कार्पोरेशन शाखा पचौरी, जिला-रायगढ़ में शाखा प्रबंधक के रूप में पदस्थापित| संपर्क सूत्र- 269"धवल निधि" बालाजी नगर,पचौर, जिला- रायगढ़, म. प्र.,पचौर 465683 मो-09425084542 email-kamlesh14860@gmail.comCopyright@कमलेश श्रीवास्तव / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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