मुस्कुराने की वजह जो मिल गया होता

अगर मुझ पर कभी तेरा इशारा हो गया होता

डूबती धार में मुझको किनारा मिल गया होता

कभी भी लड़खड़ा करके न गिरता फिर तो जीवन में

अगर मुझको तुम्हारा ही सहारा मिल गया होता

मैं गुल जैसा ही खिलता अपने जीवन के बगीचे में

तुम्हारे प्रेम के जल से अगर सीचा गया होता

जमी पर ही चमकता चांद सूरज की तरह मैं भी

निगाहों का तेरे तारा अगर मैं बन गया होता

देखकर खुद की कमियां जिंदगी खुद ही सुधर जाती

अगर खुद की निगाहों में बुरा जो बन गया होता

सदा पहलू में तेरे रहकर ही जीवन बिताता मै

कहां रहता है गर तेरा ठिकाना मिल गया होता

हुनर मै सीख लेता मुस्कुराने का भी जीवन में

मुझे भी मुस्कुराने का वजह जो मिल गया होता

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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