मुसलसल युद्ध चलता है कोई घायल ज़ेहन में है ।
यूँ मैं ख़ामोश रहता हूँ मगर हलचल ज़ेहन में है ।
न तुम आईं कभी घर में न तुमने दस्तकें दी हैं ।
तुम्हारे पाँव बजते हैं, तेरी पायल ज़ेहन में है ।
अकेला हूँ जनम से ही अकेले ही सफ़र काटा ।
मैं रहता हूँ शहर में यूं मगर जंगल ज़ेहन में है ।
समझदारी हमें अब तक कभी भी रास ना आई ।
हमेशा ही ये लगता है कोई पागल ज़ेहन में है ।
मैं पल में भीग जाता हूँ , मेरी आँखें बरसती हैं ।
मचलता अश्क़ छलकाता कोई बादल ज़ेहन में है ।
यूँ मैं भी आज में जीता हूँ औ ये ग़म भी ताज़ा है ।
ये दीग़र बात है गुज़रा हुआ हर पल ज़ेहन में है ।
मेरी सच्चाइयां हरदम महकती हैं मेरे दिल में ।
वही जो है शिवाले में , वही सन्दल ज़ेहन में है ।
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