मुद्दतें गुज़र गईं ख़ुद से मिले हुए

फिर मुद्दतें गुज़र गईं ख़ुद से मिले हुए,

मैं ख़ुद में खो गया था तुझे सोचते हुए।

और आप हैं कि हाथ लगाने पे आ गये,

दो दिन नहीं हुए हैं अभी दिल लगे हुए।

तेरे बग़ैर ही मेरी रातें गुज़रनी थीं,

मेरे नसीब में यही दिन थे लिखे हुए।

काँधे हसीन मिलते हैं रोने के वास्ते,

काम आ रहे हैं दर्द तुम्हारे दिये हुए।

अपने यक़ीं का उसको दिलाया यक़ीन यूँ,

मैं बेवक़ूफ़ बन गया सब जानते हुए।

औरों से हम ज़ियादा इबादत-गुज़ार थे

और फिर गुनह भी हमसे बड़े से बड़े हुए।

जो कहता था कि सब्र का फल मीठा होता है,

उसको दिये गए हैं सभी फल सड़े हुए।

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रचनाकार

Author

  • मेहदी हुसैन ख़ालिस

    ये न पूछ कौन हूँ क्या हूँ मैं, ये समझ कि जो हूँ कमाल हूँ।नाम:- मेहदी हुसैन ख़ालिस,माता-पिता - फ़क़ीर मोहम्मद, नसीम बानो,जन्म तिथि :- 03/08/1995,जन्म स्थान:- डभोई, गुजरात,शिक्षा:- कैमिकल एन्जीनियरिंग से ग्रेजुएट,वर्तमान कार्यक्षेत्र:- फ़ैमिली बिज़नेस और साथ ही कम्पीटिटिव एग्ज़ाम्स की तैयारी,वर्तमान पता:- डभोई, गुजरात- 391110,Copyright@मेहदी हुसैन ख़ालिस/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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