मुझे गिराने की जिद जमाना कर रहा है,
मुझको मिटाने कोशिश जमाना कर रहा है ।
वक्त से जंग आजकल, मेरी,चल रही है,
कभी मैं इससे लड़ रहा हूं,
कभी ये मुझसे लड़ रहा है,
उसे मालूम नही मैं,
गिर गिर के उठ सकता हूं,
काटें चाहे कितने बिछाए,
मैं फिर भी चल सकता हूं
अबरोध चाहे कितने आए,
अब मैं नही रुक सकता हूं,
अब आंसू बहाने का वक्त नहीं,
हालत से लड़ सकता हूं,
सुन ये मगरुर दरिया,
तुझे अभी ये मालूम नही शायद,
अपने बाजू पे भरोसा है,
पतवारों पे भरोसा न करता हूं ।
मैं दीपक बन कर जलता हूं,
तम को आप निगलता हूं,
खुद को जला कर जमाने में,
सबको प्रकाश मैं देता हूं ।।
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