मान बेच कर सुविधा पाना-तौबा-तौबा

मान बेच कर सुविधा पाना-तौबा-तौबा

साहब के तलवे सहलाना- तौबा-तौबा !

मिहनत-मजदूरी का रूखा-सूखा अमृत

हया गँवा कर हलवा खाना-तौबा-तौबा!

गली-गली में, गाँव-शहर में,डगर-डगर में

नफरत का यह ताना-बाना-तौबा-तौबा !

धरती माँ के फूल भरे दामन के नीचे

पगलों का बारूद बिछाना- तौबा-तौबा!

छुपकर घायल करना,सम्मुख हाल पूछना

उनका ये अंदाज पुराना- तौबा-तौबा!

जिधर देखिए, शोख़ सियासत नाच रही है

नज़र कहीं है,कहीं निशाना-तौबा-तौबा!

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

Total View
error: Content is protected !!