याद करो वह मां का आंचल पलते थे जिस आंचल में
जब जब संकट आ जाता था बच जाता था आंचल में
बचपन में जीवन दिखता था तो केवल मां के आंचल में
नहीं किसी का भय होता जब रहते मां के आंचल में
रातों में सोने के पहले मां कोई कहानी बुनती थी
सुनकर करुण कहानी उसकी आंख मेरी भर जाती थी
कुछ किस्से को सुनकर के हम अंदर से डर जाते थे
चिपक ठिठुर कर छुप जाता था अपनी मां के आंचल में
बचपन में लगती बहुत चोट जब उछल कूद हम करते थे
मरहम पट्टी वह कर देती थी फूक फूकर ओठो से
ठीक हो गया रोओ मत अब छिया लिया फिर आंचल में
दर्द हमारा ठीक हो गया प्यार मिला जब आंचल मे
आंचल से बढ़कर कवच सुरक्षा कहीं नहीं हो सकती है
मां के आंचल में बच्चों का स्थान सुरक्षित होती है
मां का आंचल ही जीवन का बुलेट प्रूफ हो सकता है
बुलेट प्रूफ तो जीवन का होता है मां के आंचल में
कष्ट हुआ यदि मुझे कभी तो खुद मा ही रो लेती थी
वह मेरी हर गलती को अपने सिर पर रख लेती थी
अब तो सब कुछ भूल गया हूं अपने बीवी बच्चों में
नहीं मिला है नहीं मिलेगा जो प्यार था मां के आंचल में
मां तो मां होती है जग में मां का कोई मोल नहीं है
निस्वार्थ भाव जो भरा है मा मे उसका कोई तोल नहीं है
रचनाकार
Author
गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |