मां अब मै बडा हो गया हूं

सौन्दर्य भरा जीवन
व्यतीत कर रहा एक बच्चा
भवन का मालिक समझता खुद को
जब मां लाती है दूध का ग्लास
तो फेक देता है बिना सोचे समझे
मां के पूछने पर चीनी कम होने होने करता है नाटक
सब कुछ उसे लगता है बेहद बेकार
हर मामले जज बनने की करता है कोशिश
बिना एक पल सोचे मांग लेता है कुछ भी
कुछ दिन रहता है उसके साथ
फिर न अच्छा लगने का करता है बहाना
जल्दी सोना ‘ बिना मां के जगाये न उठना
छण भर मे गायब होते ही
अपने दोस्तो के पाया जाता है
जो कि जाता है
उच्च शिक्षण कार्य के लिए घर से थोडा दूर
लाता है दूध छोटे से पैकेट मे
सम्भालता ऐसे है जैसे जान बसी हो उसकी उसमे
नही फेंकता दूध
बनाता है उससे चाय
मीठी न होने पर भी अच्छी ही बताता है
अब करने लगा है हर मामले वकालत
देर रात सोने पर भी
उठ जाता है जल्दी सुबह
जो फेंकता था थोडा नमक कम होने पर समूची थाली
आज वह कमप्रोमाइज करता है दुबारा कहां से लायेगा इसको डरता है
कोई काम बिना सोचे नही करता है
पैसे कम पड जायेंगे इसीलिए डरता है
जो करता था हवेली की मांग
वह एक कमरे मे सीमित हो गया है
लगता है अब बडा हो गया है

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रचनाकार

Author

  • रोहित यदुवंशी

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