महज एक दिल के कोने में

तुम्हारे कर्म शामिल थे तुम्हारे गगन छूने में
महज एक भाग्य तेरा था ना तुझको पंख देने में
जमी तैयार की थी जब तुम्हारे कर्म फूलों की
तभी महका गगन सारा तुम्हारे मुस्कुराने में
हजारों पंख शामिल हो अगर ना हौसला दिल हो
सदा अक्षम रहेगा वह गगन पर उड़ के जाने में
अगर धरती को चूमोगे तभी आकाश पाओगे
अगर आधार छोड़ोगे तुम्हे रोकेगा जाने में
दिलों में अहम पालोगे डूब कर अपनी शोहरत पर
भले दीपक जले होंगे रहोगे तुम अंधेरों में
हंसाना सीख लोगे गर कभी तुम भी जमाने को
करेंगे सब मदद तेरी तुम्हारे मुस्कुराने में
महज अपने लिए जीना कोई जीना नहीं होता
भगाओ आज जाकरके जो गम बिखरे जमाने में
देख कर के जो कठिनाई अगर तुम हौसला तोड़े
निराशा साथ देगी तब तुम्हारे टूट जाने में

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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