एक मन- अनगिन चुभन,मत शूल की बातें करो
ख़ुश्बुओं को भी तलाशो , फूल की बातें करो ।
बैठकर इस तट लहर गिनने से अब तौबा करो
संतरण-संकल्प हो – उस कूल की बातें करो ।
चाँद-तारे-कहकशाँ के सुन लिए क़िस्से बहुत
रू-ब-रू हैं – धूप की,कुछ धूल की बातें करो।
मत बघारो ज्ञान अपना लोग देंगे फैसला
खुले दिल से कभी अपनी भूल की बातें करो।
फुनगियों का हरापन महफूज़ जिसकी बदौलत
कभी उस संजीवनीप्रद मूल की बातें करो।
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