मजदूर

करते हैं दिन रात परिश्रम तब जाकर जी पाते हैं
किसी तरह से जीवन में वो अपना पेट पालते हैं
सुनना पड़ता है मालिक की डांट हमेशा रह-रहकर
करते रहते काम हमेशा गाली को भी सह सह कर
एक सम्मान को पाने को अपमान सहन कर लेते हैं
पहुंची ठेस भावना मन में दबा हमेशा लेते हैं
बीवी बच्चों के पालन में कोई कमी न रह जाए
हरदम मेहनत करते जिससे कष्ट कोई ना हो पाए
नहीं बताते बच्चों से दुख स्वयं सहन कर जाते हैं
आगे का जीवन सुखमम हो यह स्वप्न देखते जाते हैं
एक सुख पाने की लालच में सब दुख सहते रहते हैं
कठिन परिश्रम करने से ओ बुड्ढे जैसे दिखते हैं
एक फटा हुआ मैला कुर्ता पैरों में हल्का चप्पल है
थकान मिटाने को अपने कंधे पर रखा चद्दर है
पोछ पसीने को चद्दर ताजा महसूस ओ करते हैं
उसे लपेटे सिर में अपने सदा धूप से बचते हैं
मजदूरों का जीवन तो मेहनत पर टिका हुआ होता
होते ना मजदूर अगर तो काम कोई भी ना होता

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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