तेरे भावों में ही डूबा रहा, मैं तो सदा लेकिन
मेरे भावों की भाषा को ,कभी तुम ना समझ पाए
मेरे भावुक हृदय से जो ,निकलते हैं कभी आंसू
ह्रिदय पावन के उस जल में ,कभी तुम डूब ना पाए
कभी देखा था जो सपना ,तुझे अपना बनाने का
वो सपने ही थे जीवन में, हकीकत मे न बन पाए
अंधेरे में ही रखा था, सदा जीवन को तुम मेरे
किरण एक भी उजाले की, कभी दिल में न ला पाए
मेरे जीवन को तूने ,भर दिया है ,दर्द से लेकिन
उमड़ते दर्द को आखिर, कभी तुम ना समझ पाए
सदा ही अपने जीवन का ,तुझे अमृत मै कहता था
विषैला ही किया जीवन ,कभी अमृत न बन पाए
सदा ही खुशबू फैलाई ,जगत में स्वार्थ की तूने
महकती फूल की खुशबू ,कभी भी तुम ना बन पाए
सदा ही राग छेड़ा था ,मधुर संगीत का मैने
मगर दिल में सजो करके, कभी ना गुनगुना पाए
सदा ही हार बैठा था ,तूझी पर अपना ये तन मन
मगर दिल जीत ले ,ऐसी लड़ाई लड़ नहीं पाए
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