राजा गए प्रजा जब आए भवा देश कय बंटाधार।
बढ़ी गरीबी हल्ला बोल चारिव लंग बस भ्रष्टचार।।
लोकतन्त्र मा लुटेक पाईन नेतक खुलीगा देखो पोल।
मुंह मा राम बगल मा छुरी उप्पर से साधु कय खोल।।
देशहित छोड़ी आपन हित मा बदली गवा नेतक व्यवहार।
महंगाई गरीबी बेरोजगारी से तड़पी रहा जनतक परिवार।।
काठमांडू मा फुहर गंधाय गंधात हुंवा कय पानी हय।
पढ़े लिखे मारे फिरत देश मा लागत बेकार जवानी हय।।
दाल चाउर कय भाव बढ़ा हय बढ़ा गाड़ी मोटर कय भाड़ा।
कर्मचारिन कय चांदी हय बढ़ा तनखा बैठ बजावत नगाड़ा।।
सुख चैन अमन रहय पहिले कुछ राजा कय राज मा।
आज हत्या हिंसा मारपीट बढी गवा देखो समाज मा।।
काम नाई जहां भवन सड़क कय नेता हुंवा बनावत हैं।
अपने हिस्सक घुसपात निचे से उप्पर सब पचावत हैं।।
पढ़े लिखे देखव पान बेचत महिमा राम कय न्यारी हय।
लोकतन्त्र मा महा गरीबी महंगाई जनतप भारी हय।।
खुशीक सपना सजावे वाली जनता आज परेशान हय।
राजतंत्र का मारी भगाइन आज किस्मत उनके बौरान हय।।
पानी कर्जा ना तो खाद बिया तड़फत आज किसान हय।
लोकतन्त्र मा सपना टूटा जनता आज परेशान हय।।
नौकरी आज उहे कय लागत उप्पर तक जिकय पहिचान हय।
पढ़े लिखे बैठे तेल लगावत अनपढ़न कय होत सम्मान हय।।
कहि गय सिया से रामचंद्र कलयुग मा जब उ दिन आई।
पढ़े लिखे सब नौकर बनी जाई हैं अनपढ़ सत्ता पाई।।
जनता तरसी लोन तेल का नेता कर्मचारी मौज मनाईहैं।
देंही देखाइहैं मेहरूवे अपन अंग्रेजी गाना गईहैं।।