भक्त की विजय का पर्व : होली(नाटक)

नेपथ्य से स्वर – जो किस्सा सुनते आये बाबा- दादा के मुख से, वही आज हम तुम्हें सुनाते हैं । रंग -गुलाल का उमंग- उल्लास भरा यह पर्व हम होली क्यों मनाते हैं। बात है सदियों पुरानी , जिसकी गाथा ग्रंथो में हैं आज हम जानेंगे कितनी शक्ति पूजा और मंत्रों में है।

          ( प्रथम दृश्य)

( प्रहलाद नारायण का जाप कर रहा है़ तभी उसकी बुआ होलिका का प्रवेश)

होलिका- ( आवाज देतीं है़)प्रहलाद …..प्रहलाद

प्रहलाद- ( हाथ जोड़कर अपनी पूजा समाप्त करता है़ और बुआ होलिका का स्वर सुनकर उत्तर देता है़) ….आइये बुआ जी आपको मेरा अभिवादन… आप किस प्रयोजन से मुझे पुकार रही थीं ?

होलिका- प्रहलाद.. ना जाने तुम किस प्रभु की वंदना करते रहते हो, जबकि तुम्हारे पिता हिरण्यकश्यप से बढ़कर पूरे संसार में शक्तिशाली नहीं है़। इसलिए तुम उन्हीं की पूजा करो।

प्रहलाद- एक बालक के लिए उसके पिता पूज्यनीय होते हैं। इसलिए मैं अपने पिता हिरण्यकश्यप का सम्मान करता हूँ। लेकिन क्या करूं, मेरा मन नारायण में रमता है़।
होलिका- क्या तुम्हारा प्रभु तुम्हें हर संकट से बचा सकता है़?
प्रहलाद- मेरा अपने प्रभु पर अटूट विश्वास है़। वह मुझे हर विपरीत स्थिति से उबार सकता है।

होलिका- तो क्या वह तुम्हारी आग से भी रक्षा कर सकता है़।
प्रहलाद- निःसंदेह
( महाराज हिरण्यकश्यप अपने सेनापति सहित का प्रवेश )
होलिका- महाराज हिरण्यकश्यप की जय हो
प्रहलाद- पिता जी को मेरा प्रणाम
होलिका- महाराज प्रहलाद का कहना है़ उसका प्रभु उसे आग से भी बचा सकता है।
हिरण्यकश्यप – आज क्यों न प्रहलाद के प्रभु की परीक्षा हो जाये। ( हंसता है) प्रहलाद कहता है कि उसका प्रभु मुझसे अधिक शक्तिशाली है। आज देखता हूँ उस प्रभु की शक्ति।( अपने सेनापति से) सेनापति… प्रांगण में अग्नि प्रज्जवलित करने की व्यवस्था करो। आज हम एक भक्त और भगवान का तमाशा देखेंगे। ( जोर से हंसता है )

      दूसरा दृश्य

( ऊँचे- ऊँचे लपटों वाली आग जल रही है। प्रहलाद , हिरण्यकश्यप , होलिका और प्रजा खड़ी है)

हिरण्यकश्यप – ( हंसता है) आज होगी एक भक्त और भगवान के शक्ति की परीक्षा।
प्रहलाद- ( आँखे बंद करके) नारायण का जाप कर रहा है।
हिरण्यकश्यप- हा ..हा ..हा अंतिम समय में अपने प्रभु को स्मरण कर ले।
हिरण्यकश्यप- देखो प्रजा जनों आज प्रहलाद अपने भक्ति की परीक्षा देने जा रहा है। वह आज जीवित इस प्रचंड अग्नि में प्रवेश करेगा।
प्रजा- ( एक व्यक्ति) ऐसा अनर्थ न करो महाराज।
प्रजा ( अन्य व्यक्तिगण) हाँ हाँ ऐसा मत करिए …महाराज
हिरण्यकश्यप- शांत …शांत..प्रजा जनों.. मुझे निर्दयी मत समझो , उस आग में सबसे पहले मेरी बहन होलिका प्रवेश करेगी। फिर प्रहलाद इस अग्नि में अपनी बुआ की गोद में बैठेगा।
होलिका- भ्राता ,मैं इस अग्नि में प्रवेश करने के लिए तैयार हूँ।
हिरण्यकश्यप- तो देर किस बात की…. शीघ्रता करो।
( होलिका अग्नि में प्रवेश कर जाती है)
हिरण्यकश्यप- ( प्रहलाद से) अब तुम्हारी बारी है …अपने भक्ति की परीक्षा दो अथवा ये आडंबर त्याग दो

हिरण्यकश्यप- ( हंसता है) अब देखता हूँ। तुम्हारा नारायण इस भयंकर अग्नि से तुम्हारी किस प्रकार रक्षा करता है।
प्रहलाद- नारायण..नारायण का जाप करते हुये अग्नि में प्रवेश कर जाता है।
होलिका- ( जो पहले से अग्नि में बैठी है) आओ प्रहलाद मेरी गोद में बैठ जाओ।
( भगवान विष्णु प्रकट हो जाते हैं । वह अपने प्रभाव से अग्नि सुरक्षा कवच होलिका से उतार करके प्रहलाद को धारण करा देते हैं )
होलिका- ( अग्नि सुरक्षा कवच उतरने ही जलने लगती है) बचाओ…. बचाओ। लगता है मेरी शक्तियाँ समाप्त हो रहीं हैं। मैं आग में जली जा रहीं हूँ।

हिरण्यकश्यप- ( आश्चर्य से) ये क्या हो रहा है….. मेरा सिर चकरा रहा है। ( हिरण्यकश्यप सर पकड़कर वहाँ से भागता है).
होलिका- भैया ….मुझे बचाओ…. भैया मुझे बचाओ..
( प्रहलाद आग में भी अपने नेत्र बंदकर भगवान विष्णु का जाप कर रहा है)
होलिका- हाय कोई मुझे बचाओ…. हाय कोई मुझे बचाओ।
( होलिका का स्वर धीरे- धीरे थमने लगता है। वह जलकर राख हो जाती है। अग्नि अपने आप शांत हो जाती है। प्रहलाद सुरक्षित निकल आता है)

प्रजा- भगवान विष्णु की जय हो…..प्रभु की जय हो….

( चारों तरफ रंग और गुलाल उड़ने लगता है)

नेपथ्य से गीत का स्वर आज ….खुशी मनाओ सखी… मंगल- गीत गाओ सखी….

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रचनाकार

Author

  • शरद कुमार वर्मा

    लेखक, E-3 /676 सेक्टर H एल. डी . ए कॉलोनी , कानपुर रोड लखनऊ ( उ. प्र .) 226012.परिचय- पिछले दस वर्षों से कहानी, कविता, लेख और नाटक आदि लेखन। रचनाएं अहा जिंदगी, नंदन, चंपक , सरिता ,सुमन सौरभ,निरोग धाम आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के लखनऊ जनपद में वरिष्ठ शिक्षक के पद पर कार्यरत। Copyright@ शरद कुमार वर्मा/इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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