बेदर्दों को दर्द सुना कर,क्या होगा
बहरों की महफ़िल में गा कर क्या होगा !
आस्तीन में जिसने पाला साँप यहाँ
कहिए उस से हाथ मिलाकर क्या होगा !
नाजुक है,नादाँ है-संभाले रखिए
दिल दीवारों से टकरा कर
क्या होगा !
!
काग़ज के ये फूल रंग है,गंध नहीं
इनसे पूजन – थाल सजा कर क्या होगा !
परत-दर-परत मैल भरा मन में जिसके
गंगा रोज नहाकर उसका क्या होगा!
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