बेदर्दों को दर्द सुना कर,क्या होगा

बेदर्दों को दर्द सुना कर,क्या होगा

बहरों की महफ़िल में गा कर क्या होगा !

आस्तीन में जिसने पाला साँप यहाँ

कहिए उस से हाथ मिलाकर क्या होगा !

नाजुक है,नादाँ है-संभाले रखिए

दिल दीवारों से टकरा कर

क्या होगा !

!

काग़ज के ये फूल रंग है,गंध नहीं

इनसे पूजन – थाल सजा कर क्या होगा !

परत-दर-परत मैल भरा मन में जिसके

गंगा रोज नहाकर उसका क्या होगा!

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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