बेजुबान है तो क्या कोई जज्बात नही है,
मां के पेय पर शिशु का क्या अधिकार नहीं है।
कौन सा मुंह दिखलोगे,दुनियां बनाने वाले को,
क्या पाषाण ह्रदय में, बिल्कुल प्यार नहीं है।।
मां का पेय तो शिशु के लिए,रब ने खुद अंकित किया है
फिर क्यूं मेरे हक को,मुझे सदियों से वांछित किया है ।
जब बड़ा हो जाऊंगा,तो खुद ही आहार ढूंढ लूंगा,
मगर मेरी भूख को मार के,तुमने अच्छा नही किया है।।
वैसे तो हक पूर्ण हमारा है,पर कम से आधा दे देते,
मैं भी गौ माता का पुत्र हूं,इतनी तो दया कर देते ।
अभी मैं भूसा नही चबा सकता,मैं और नही कुछ खा सकता,
तुम नर हो मैं एक अज्ञानी पशु,तुमको और नही समझा सकता ।।
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