बुरा ना मानव होली हय(अवधी कविता)

होली हय भाई होली हय बुरा ना मानव होली हय।
फागुन महिनम उड़त हय धुरी मिठ सब कय बोली हय।।
गोंहू अउर महुवा पाक चुनर सब कय धानी हय।
पिचकारी मा रंग भरत देखव बिटिया रानी हय।।
ढोल मजीरा सब लंग बाजत गांव गांव मा फाग हय।
होलिक खुशी सबके मन मा चूल्हम सब के आज हय।।
एक दोसर से बैर भुली कय चारिव लंग सदभाव हय।
गले मिलत सब जन देखव कौनो नाय दुराव हय।।
चारिव लंग अबीर गुलाल सब के हाथेम रंग हय।
नाचत गावत मौज मनावत सब लंग हुडदंग हय।।
प्रहलाद बचे भक्ति से अपने होलिका जरी गय आग मा।
एक आपस कय बैर दुश्मनी भुलाई देव यही फाग मा।।
बिटिया बहिन मईके मा आईं होली कय त्योहार मा।
होलिम भीजी बड़की भौजी रंग कय फुहार मा।।
रंग धरे पुड़िया मा लरिके लिहे बाल्टिम घोरत हय।
गांव भरेंम इधर उधर पिचकारी लिहे डोलत हय।।
कोईक घरमा बरिया फुलौरी कोईक पिचक्का बनत हय।
बड़के बप्पक द्वारेप देखव भांग ठंढाई छनत हय।।

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रचनाकार

Author

  • आनन्द गिरि मायालु

    (कवि, लेखक, पत्रकार, समाजसेवी एवं रेडियो उद्घोषक) शिक्षा : स्नातक पेशा : नौकरी रुचि : लेखन, पत्रकारिता तथा समाजसेवा देश विदेश की दर्जनों पत्र पत्रिका में कविता, लेख तथा कहानी प्रकाशित। आकाशवाणी लखनऊ, नेपाल टेलीविजन तथा विभिन्न एफएम चैनल से अंतर्वाता तथा कविताए प्रसारित। भारत तथा नेपाल की तमाम साहित्यिक संस्थाओं से सम्मान तथा पुरुस्कार प्राप्त। पता : करमोहना, वार्ड नंबर 3, जानकी गांवपालिका, बांके (लुम्बिनी प्रदेश) नेपाल।Copyright@आनन्द गिरि मायालु/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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