बीतते हुए साल ने मुझसे रोते हुए ये कहा
थक गया हूं ,टूट गया हूं, रूठ गया हूं अपनों से
मुझे अब जाने दो
पाखंडों से भरा हुआ ये विष का प्याला
नहीं पिया जाता मुझसे अब जाने दो
गलत काम का गलत नतीजा होता है
जो जैसा ही करे वही ओ पाता है
समय परिस्थिति उनकी होती
जब काम बिगड़ता उनका है
साल नहीं अच्छा था कहकर
करते हैं बदनाम मुझे अब जाने दो
भीनी भीनी खुशबू जैसी तैर रही है तेरी यादें
छीन लिया सब पर्दा मेरा
वेपर्द हुआ मै आज मुझे अब जाने दो
सव्र धैर्य सब टूट चुके हैं ईर्ष्या भरी हुई मन में
परोपकार का पता नहीं
स्वार्थ भरा संसार मुझे अब जाने दो
जाडा वर्षा गर्मी देखी देखी सभी बहार
शर्मसार हो गया देख कर मानव का व्यवहार
मुझे अब जाने दो
राजनीति का खेल धिनौना कर गई मुझे बदनाम
शुरू हुआ था स्वागत से अब अंतिम में दुत्कार
मुझे अब जाने दो
मैं बूढ़ा हो गया मुझे अब जाने दो
आया नूतन वर्ष मुझे अब जाने दो
रचनाकार
Author
गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |