बिकाय गए भगवान(अवधी कविता)

समाज कहय जिनका दलित उनके जाति कुम्हार।
माटी तोड़ी मरोड़ी कय बनावत जग कय पालनहार।।
लरिके बिटिए अउर मेहरूवा पालत घर परिवार।
वाह जमाना भगवान का आज सब बेचेक हय तयार।।
माटी कय मनाई इक पुतली रोज बनावत हय भगवान।
भगवान बनाय घाम मा सुखाय सजावत हय दुकान।।
जग काय स्वामी देखो आज दुकान दुकान बिकात हय।
पैसा दाई कय भगवान का खरीद घर लाई जात हय ।।
दुनिया बनावे वाले कय मनाई मोल तोल आज करत हय।
बेची भगवान का माटीक मोल जेब आपन भरत हय।।
भगवान से पियारा कोई नई जगमा जो खुदई बिकात है।
कागज अउर माटी कय भगवान चाहे जो लाई जात हय।।
लकड़िक पिडही अउर देवाल मा भगवान सजावत हय।
मंदिर ताख अउर घर मा मूर्ति फोटो लगावत हय।।
भक्त प्रेमी माटिक भगवान कय करत हय सम्मान।
देखो आज बिकाय गए भगवान।।

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रचनाकार

Author

  • आनन्द गिरि मायालु

    (कवि, लेखक, पत्रकार, समाजसेवी एवं रेडियो उद्घोषक) शिक्षा : स्नातक पेशा : नौकरी रुचि : लेखन, पत्रकारिता तथा समाजसेवा देश विदेश की दर्जनों पत्र पत्रिका में कविता, लेख तथा कहानी प्रकाशित। आकाशवाणी लखनऊ, नेपाल टेलीविजन तथा विभिन्न एफएम चैनल से अंतर्वाता तथा कविताए प्रसारित। भारत तथा नेपाल की तमाम साहित्यिक संस्थाओं से सम्मान तथा पुरुस्कार प्राप्त। पता : करमोहना, वार्ड नंबर 3, जानकी गांवपालिका, बांके (लुम्बिनी प्रदेश) नेपाल।Copyright@आनन्द गिरि मायालु/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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