बस चलना है
बस चलना है
खा़मोश अँधेरी रातों में
बस चलना है
इक दिन तो रोशन होगी ये तब तक ऐसे ही जलना है
बस चलना है
दैर-औ-हरम के चर्चे में जब बात हमारी आयेगी
जब इंसानो की बस्ती में बस इश्क़ ख़ुदा हो जाएगा
उस दिन की धुन में फिरना है तब तक ऐसे ही चलना है
बस चलना है
सुनसान शहर की गलियों में जब सुख लाज़िम हो जाएगा
जब धूप की खुष्बू से यारों ये सारा आलम गायेगा
उस दिन की चाह में बढ़ना है तब तक ऐसे ही चलना है
बस चलना है
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