बसाकर दिल में उनको

दिलों में जिनके हूं अब तक दिलों में उनको रखूंगा
न निकलूंगा कभी दिल से निकलने उनको ना दूंगा
चुराया दिल मेरा जिसने उसी का दिल चुराऊगा
सदा ही दिल में रख कर के उन्हें अपना बनाऊंगा
लगी गर ठेस दिल में तो उसे दिल से निकालूगा
दिलों में रोशनी भर कर अंधेरे को भगाऊगा
चुभे खंजर जो आंखों से उसे दिल में उतारूगा
सदा ही दिल को समझा कर सभी उलझन मिटाऊगा
उमड़ता भाव दिल में जो भले ही कह ना पाऊंगा
मगर भावो में खोकरके सदा उनको बताऊंगा
मिलाकर मन से ही मन को दिलों से दिल मिलाऊगा
दिलों में प्रेम पनपे जिससे वो बातें सिखाऊंगा
परख दिल से करे गर वो तो मैं सब कुछ दिखाऊंगा
दिलों में क्या छुपा है राज मैं खुलकर बताऊंगा
जो विकृतियां भरी मन में उसे बाहर निकालूंगा
पतित पावन जो कर जाए तो गंगाजल बनाऊंगा
सदा जो मान देते हैं मैं उनका मान रखूंगा
बसाकर के उन्हें दिल में सदा भगवान मानूगा

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

Total View
error: Content is protected !!