फिर बिरहिन मन में हूक उठी
जब बाग़ में कोयल कूक उठी
सरसों भी मन में फूल रही
वायु के संग में झूल रही
भौंरे भी गीत सुनाते हैं
फूलों पर नृत्य दिखाते हैं
मन का मयूर फिर नाच उठा
आया बसन्त ये बांच उठा
अमवा देखो बौराया है
आया बसन्त सुन पाया है
पीला घूंघट पीली चूड़ी
पीला गजरा है केशों में
ऐसा मनोहारी दृश्य कहाँ
दिख सकता अरे विदेशों में
प्यारे यह समय सुहाना है
तिरंगा भी फहराना है
प्यारी इस भारत भूमि की
रज मस्तक मुझे लगाना है
हैं अन्त में विनती यही मेरी
माँ सरस्वती स्वीकार करें
शब्दों की माला को मेरी
पहनें हम उपकार करें
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