कहाँ गये वो दिन जब
घर घर होली थी,
केमिकल का भय
नहीं मन में होली थी।
सन्नाटो का काम नहीं,
हुड़दंगों की होली थी।
मनमुटाव का कोई नाम
नहीं,भलेचंगो की होली
थी।
बात अपने-परायों की
नहीं,बस दीवानों की
होली थी। पपड़ी, गोंठा
खुरमी, पकवानों की
होली थी।
मायके बेटी बहन आये
मिलन की होली थी,
बच्चे नानी के घर जाए
मन की होली थी।
“नहीं लगे जहाँ किसी
को ठेस, ना होता
जिसमें बुराई का दीदार
है, माह आ गया रंगो का
बस फागुन की फुहार है।”
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