फूल गवाह है निशा के संघर्ष का

फूल गवाह है निशा के संघर्ष का

जब पूरब की कोंख से
प्रगट होगा प्रकाश पूंज
और होगी चितवत
खग वृन्दों की गूंज ।
तब आँख बरबस खुलेगी
सृष्टि का अनुगान करने ।
चमन सोया नहीं था
जब तुम थे सोए
वो कसीदेकारी में
अपनी व्यस्त था
तुमको कुछ देने के लिए
भौर की चिलमन के पीछे
क्या करतब होते रहे
रात मशक्कत करती रही
और तुम सोते रहे
एक सुमन कहकहें
मारकर कहता होगा
अब जागो और देखो
सब तरफ रख दी हैं
मुलायम संवेदनाएं प्रकृति ने
ताकि उठते ही देखों
ओंस से नहाए फूल
फूलों से आच्छादित धरती
और तुम महसूस करों
संवेदनाएं प्रकृति का रहस्य हैं
ये जो नमियां बिखरी हैं न
चोरो तरफ
बताती हैं
कोमल बनो पूरा बनो
आदर चाहते हो तो संवेदनाओं को राह दो
ये निकलेगी तो प्रेम उगेगा
ये फैलेगी तो
कलुष का कोलाहल क्षय होगा
सबसे पहला दर्शन
उस लाल सुर्ख गुलाब का
जिसने अपना मुख रंगने में
जरा भी आना कानी नहीं की
और खड़ा हो गया अपनी भूमिका निभाने
शुभ के लिए ।
मैं गवाह हूँ
निशा के उत्पाद का ।
रात अगर खुद सोती होती तो
सुबहें क्या इतनी खुबसूरत होती कभी

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रचनाकार

Author

  • त्रिभुवनेश भारद्वाज "शिवांश"

    त्रिभुवनेश भारद्वाज रतलाम मप्र के मूल निवासी आध्यात्मिक और साहित्यिक विषयों में निरन्तर लेखन।स्तरीय काव्य में अभिरुचि।जिंदगी इधर है शीर्षक से अब तक 5000 कॉलम डिजिटल प्लेट फॉर्म के लिए लिखे।

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