फुल कहय माली से(अवधी कविता)

मुरझान डेरान मुंह बनाए एक दिन फुल कहय माली से।
का बिगारेंन तुम्हार हम जवानिम तुरत हमका डाली से।।
काटत छाटत सबसे बचाए खाद अउर डारत पानी।
बिरवस तुरि लेत हमका तुम आवत जैसे जवानी।।
दाना पानी तुमसे नाई मांगित ना कउनो नक्सान करित।
सोचों हमरे बलिदानी का खुद मरि कय दोसरेक सम्मान करित।।
सोचों तनिक तुम मनई बनि कय हमरेव मा तो जान हय।
फलित फुलित बाढीत हय हमरेव मा तो प्रान हय।।

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • आनन्द गिरि मायालु

    (कवि, लेखक, पत्रकार, समाजसेवी एवं रेडियो उद्घोषक) शिक्षा : स्नातक पेशा : नौकरी रुचि : लेखन, पत्रकारिता तथा समाजसेवा देश विदेश की दर्जनों पत्र पत्रिका में कविता, लेख तथा कहानी प्रकाशित। आकाशवाणी लखनऊ, नेपाल टेलीविजन तथा विभिन्न एफएम चैनल से अंतर्वाता तथा कविताए प्रसारित। भारत तथा नेपाल की तमाम साहित्यिक संस्थाओं से सम्मान तथा पुरुस्कार प्राप्त। पता : करमोहना, वार्ड नंबर 3, जानकी गांवपालिका, बांके (लुम्बिनी प्रदेश) नेपाल।Copyright@आनन्द गिरि मायालु/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

Total View
error: Content is protected !!