फिर भी लिखना है

किसको फ़ुर्सत पढ़े-सुनेगा ?

फिर भी लिखना है,गाना है !

ख़ुदगर्जी की होड़ मची है

मतलब के सब नाते हैं

मन में कपट और कटुताएँ

मधुर-मधुर बस बातें हैं

संशय भरा हवाओं मे अब

अपना लगता बेगाना है!

फूल ,चाँदनी,चिड़िया, बादल

गँवा रहे हैं सम्मोहन

सुविधाओं का आकर्षण है

प्रतिबिम्बित चितवन-चितवन

देखा-देखी भाग रहे सब

यह अज्ञात कहाँ जाना है !

फैल गया बाज़ार हर तरफ

अद्भुत है गहमा-गहमी

धन का उद्धत नृत्य चल रहा

इतराती है बेशर्मी

महाजाल है विज्ञापन का

तिकड़म का ताना-बाना है!

जिन्हें प्यार आदर्शों से है

गर्दिश में हैं उनके तारे

सच की राह चला जो राही

उसके सम्मुख संकट सारे

झूठ प्रगल्भ हुआ है इतना

दारुण सच का हकलाना है !

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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