रंग के संग भंग और हाथ में गुलाल हो
झूम रही सबके मन में फागुनी बयार हो
खेलते गुलाल सब ही गाते एक राग हो
टोलियों के पीछे आज रंग का फुहार हो
होलिका जली हुई सुना रही थी ये व्यथा
जलते हैं सदा वही जो पापियों के साथ हो
पर्व तो है भाव दिल के जोश के उमंग का
भाव में ही डूबकरके भाव भरा रंग हो
खिल रही गुलाब कलियां जैसे उसके गाल पर
गाल सब के रंग दू आज चाहता गुलाल हो
भूलकर के गिला शिकवा प्रेम से मिले सभी
हर्ष प्रेम से भरा ही रंग और गुलाल हो
भीग जाए तन ये मन और प्रेम का गुबार हो
चारों तरफ ऐसी आज फागुनी फुहार हो
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