प्रेम रोगी

हे प्रेम ! की बहती हवाओं सुनों
मैं हूंँ नही कोई निरोगी
मुझे बचालो उसके कदमों से
अब मैं हूंँ एक गुलाम प्रेम रोगी ।

अब खो रहा है धैर्य हमारा
मन ,अंग में भीषण विद्रोह है
सिसक रही है अंतरात्मा
अपने जान से कोई न नेह है

अब चाहे उसपर जान लुटाएं
या खुद से नर्क जीवन जीएं
मरकर भी चैन न आएगा
इस जाल से कैसे निकल जाएं ?

अब दिन घुट–घुट कर रहना है
बन कर प्रेमी या कोई ढोंगी
मुझे बचालो उसके कदमों से
अब मैं हूं एक गुलाम प्रेम रोगी।।

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रचनाकार

Author

  • नवेंदु कुमार वर्मा

    जिला गया( बिहार) 824205. Copyright@नवेंदु कुमार वर्मा/इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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