प्रेम रस

जीवन पथ अति कठिन कंटक घनेरे।

प्रेम रस का पान कर मन मधुप मेरे।।

यह समूची सृष्टि ऐषणित तंत्र है,

प्रेम ईशाकार परम स्वतंत्र है।

पुद्गल अणु परमाणु स्नेहा सिक्त हैं,

प्रेम ही इस जगत का अभीष्ट है।।

प्रेम अनुबंधित फिरे चौरासी फेरे।।

प्रेम रस०

मन बुद्धि चित्त अहं परिछिन्नता है,

प्रेम तेरे मनस की निजरूपता है।

ज्ञान भक्ति वैराग्य अनुपम शक्ति है,

प्रेम इनसे श्रेष्ठतर है, मुक्ति है।।

चिद विलासित है सदा, तम कितने घेरे।।

प्रेम रस०

धर्म अर्थ काम मोक्ष का सार है यह

बसंत का तरंग दिव्य श्रृंगार है यह।

क्या अविद्या परा अपरा ढूंढ़ता है,

प्रेम रस तेरे ही अन्दर ठहरता है।।

प्रेम रस धुल देगा मन के कलुष तेरे।।

प्रेम रस०।।

विश्वास के पाताल का है यह जलज,

त्याग निष्ठा समर्पण करता सहज।

प्रेम रस का दीप जग उजियार करता,

निष्ठुर प्रियतम तू भी सच्चा प्रेम करता।।

प्रेम रस है अशेष, पी सन्ध्या सवेरे‌।।

प्रेम रस०।।

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रचनाकार

Author

  • शेषमणि शर्मा 'शेष'

    पिता का नाम- श्री रामनाथ शर्मा, निवास- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश। व्यवसाय- शिक्षक, बेसिक शिक्षा परिषद मीरजापुर उत्तर प्रदेश, लेखन विधा- हिन्दी कविता, गज़ल। लोकगीत गायन आकाशवाणी प्रयागराज उत्तर प्रदेश। Copyright@शेषमणि शर्मा 'शेष'/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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