प्रेम नदी रस की भरी , सूखे दोनों तीर ।
तुम भी वहां अधीर हो , मैं भी यहां अधीर ।
प्रेम सदा ही नूतन है , प्रेमी सदा नवीन ।
ये सच उसको भासता , जो रहता तल्लीन ।
हम हैं मीठे आदमी , मीठी अपनी बात ।
यही हमारा धर्म है , यही हमारी जात ।
तन अरुणाचल है तिरा , आंखें चिलका झील ।
मन है फूल गुलाब का , कनक लता सा शील ।
मन को भातीं रश्मियां , तन को छुए नसीम ।
भोर आज बरसा रही , हम पर प्यार असीम ।
गुस्सा बैठा नाक पर , औ बर्ताव अजीब ।
खुला हुआ तन आपका , ये कैसी तहज़ीब ।
हम नजदीकी चाहते , वो करते तकसीम ।
हम हैं रोगी प्रेम के , दुनिया नीम हकीम ।
तन जर्जर मन बाबरा , उस पर तिरा वियोग ।
एक हमारी जान को , दुनिया भर के रोग ।
ये मज़हब है कौन सा , जो करता तकसीम ।
नफ़रत के सब पाठ हैं , ये कैसी तालीम ।
पूरे मन से कीजिए , रिश्तों की तामीर ।
आप भले हों राजकुंवर , या हों कोइ फ़कीर ।
भले महकता बीच में , उर्दू का लोबान ।
मगर दोस्तो सच यही , हिन्दी मिरी ज़ुबान ।