निर्जनों में भी सहज मधुमय सदा सुखवास करती।
प्रेम दीप की अमर ज्योति अंतसों में प्रकाश करती।।
झंझावातों के भंवर से पार करती,
मुक्तिपथ सुलभा महत् उपकार करती।
तमस घन की शोषिका जय हो तुम्हारी,
इस तितिक्षित द्वंद्व में तुम निर्विकारी।।
ऐषणित तृष्णित जगत में शीतल मलय सुबास भरती।।
प्रेमदीप की अमर०।।
राधा के उर में जली घनश्याम बनकर,
अश्रु बन बहती रही निष्काम रहकर।
बांसुरी के सप्तस्वर तुमसे अलंकृत,
मीरा के नुपूर में तू ही है सुझंकृत।।
मैथिली प्रण प्रेयिका पिनाक खण्डिनि त्रास हरती।।
प्रेम दीपकी अमर०।।
तप्त वसुधा देख नभ बरसाता पानी,
चन्द्र और चकोरी की यही कहानी।
प्रेम तरु नित व्योम चूमे आस पर,
प्रेम दीप जलता है विश्वास पर।।
संचरित यह सकल सृष्टि प्रेम का आभास करती।।
प्रेम दीप की अमर ०।।
प्रणय प्रण के द्वंद्व में रति काम है यह,
श्रेष्ठ साधन सिद्ध है निष्काम है यह।
स्वाति का ही जल सदा पपिहा पिए,
सत्य प्रेम की ज्वाला में मरे जिये।।
शेष प्रेम की दिव्य आभा तिमिर फंद विनास करती।।
प्रेम दीप की अमर०।