प्रवचना का नाम जिसने सेवा रख दिया

लालच के वशीभूत हो जो धन मे ही डूबे
सुख में सदा ही साथ रहे दुख में जो छूटे
मजबूरियों के लाभ जिनके शौक बन गये
पशु रूप में ही रहे ओ मानव न बन सके

शब्द भीगे भाव मे न अर्थ बह सके
उसकी सफलता के न ये दरवाजे खुल सके
निस्वार्थ भाव मन में जिसके पल नहीं सके
फरिश्ता बनना दूर ओ मानव ना बन सके

जो लाभ में ही अपने सदा स्वार्थ में डूबे
धंधा ही किये स्वार्थ के सेवा न कर सके
मिल जाती कैसे खुशिया जिसने लछ्य न भेदे
ऊंचे उठे और अपनी मर्यादा भी जो भूले

विषम परिस्थिति साथ निभाए वही फरिश्ते होते हैं
अपने सद्गुण कर्मों से जो सब के दिल में रहते हैं
परहित बसा दिलों में जिनके पीड़ा सबकी सुनते हैं
धरती पर ईश्वर के रूप में वही तो मानव होते हैं

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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