प्रकृति-पांचाली

कंबलों को तहियायें,समेटें रजाइयाँ

मलयानिल मन्द-मन्द लेता अंगराइयाँ !

प्रकृति-पांचाली का पत्र-चीर है अछोर

शिशिर बना दुःशासन – थक गयी कलाइयाँ ।

रूखी इन शाखों में फूटेगी हरियाली

महकेंगी-चहकेंगी सूनी अमराइयाँ !

धरती का आँचल भर जायेगा फूलों से

गायेंगे भौंरे फिर दोहे -चौपाइयाँ !

पल्लवों के परदे से कूकेगी कोयलिया

घेरेंगी यादों की मीठी परछाइयाँ !

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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