कंबलों को तहियायें,समेटें रजाइयाँ
मलयानिल मन्द-मन्द लेता अंगराइयाँ !
प्रकृति-पांचाली का पत्र-चीर है अछोर
शिशिर बना दुःशासन – थक गयी कलाइयाँ ।
रूखी इन शाखों में फूटेगी हरियाली
महकेंगी-चहकेंगी सूनी अमराइयाँ !
धरती का आँचल भर जायेगा फूलों से
गायेंगे भौंरे फिर दोहे -चौपाइयाँ !
पल्लवों के परदे से कूकेगी कोयलिया
घेरेंगी यादों की मीठी परछाइयाँ !
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