पुस्तक : B-15B फोर्थ फ्लोर
द्वारा : संजीव कुमार गंगवार
प्रकाशक: साहित्य संचय
क्यू पढ़ें :
प्रशासनिक सेवाओं में जाने के इक्षुक युवाओं द्वारा दिल्ली शहर की सुप्रसिद्ध कोचिंग संस्थानों में प्रवेश लेकर गहन तैयारी की जाती है। मुख्यतः उन्हीं युवाओं की उन कुछ वर्षों की ज़िदगी को बहुत करीब से रोचक अंदाज़ में प्रस्तुत किया है, व पुस्तक स्वस्थ एवं हल्का फुल्का मनोरंजन प्रदान करती है किन्तु यह कहना या मान लेना की पुस्तक हेतु गंभीर पाठन अनिवार्य नहीं है युक्तिसंगत न होगा क्यूंकि पुस्तक जहाँ प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए प्रयासरत युवाओं के सरल, मस्तमौला,बेपरवाह दैनिक जीवन का चित्रण प्रस्तुत करती है वहीं उनकी जीवन एवं भविष्य के प्रति गंभीरता व निहित दर्शन एवं भाव भी अनदेखे करना संभव नहीं है। ।
शीर्षक:
लेखक ने एक लम्बा समय उसी कालोनी में बिताया जिस परिवेश में इस कथानक का मूल है । कथानक में वास्तविकता के साथ साथ उस स्थान के विषय में भी पूर्ण जानकारी पाठक को देने हेतु ,पात्रों के जीवन को करीब से समझने व कथानक में बहुत कुछ सच कुछ रोचकता व बहुत सारा युवाओं वाला जोश एवं मस्ती दर्शाने हेतु यह अनिवार्य भी था और उसे ही उन्होंने वहां रह कर जिया तथा समझा और विक्रय आकर्षण के चलते किसी अन्य शीर्षक की अपेक्षा अपने निवास के पते को ही इस कथानक का शीर्षक बनाने हेतु चुना जो की एक तार्किक, सटीक सोच का परिचायक है तथा पूर्णतः उपयुक्त प्रतीत होता है।
लेखक एवं लेखन शैली :-
इस उपन्यास के लेखक संजीव गंगवार हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में रचनाये गढ़ चुके है, जो समय समय पर विभिन्न प्रकाशन गृहों द्वारा प्रकाशित भी हुयी हैं अतः वे किसी अतिरिक्त परिचय के मोहताज़ नहीं हैं । संजीव कुमार गंगवार जी द्वारा रचित उपन्यास “कागज़ के फूल” के बाद राष्ट्रिय स्तर पर उन्होंने बहुत ख्याति अर्जित की है।
घटनाक्रम के बखान का उनका आम बोल चाल का तरीका ही उनकी शैली है, पात्र हेतु उपयुक्त तथा परिस्थिति एवं स्थान पर उचित भाषा एवं बोलचाल की सामान्य शैली जो की व्यर्थ प्रविष्ट कराये गए क्लिष्ट वाक्यांश से काफी दूर है । सरल सहज वाक्यांश में लिखते हैं । फलस्वरूप पाठक को यूं प्रतीत होता है मानो स्वयं वे पल उन्होंने जिए हैं तथा वे उन तमाम घटनाओं और दृश्यों के साक्षी रहे है और वे स्वयं ही उस घटना क्रम के प्रत्यक्षदर्शी सम हो जाते हैं ।
लेखन की उनकी यही विशिष्ट शैली उनके पात्रों को पाठकों से सीधे संबद्ध करवा देती है। पाठक का घटना क्रम को महसूस करना, उस पल को जी लेना ही उसे पाठन का वास्तविक आनंद प्रदान करता है।
पात्र परिचय:-
उनकी पुस्तक के यूं तो सभी पात्र काल्पनिक हैं किन्तु उनके सुन्दर एवं व्यवस्थित प्रस्तुतीकरण के कारण वे काल्पनिक होते हुए भी वास्तविक ही प्रतीत होते हैं । यूं तो मुख्यतः सभी परीक्षाओं की तैयारी हेतु देश के विभिन्न हिस्सों से आये युवा हैं किन्तु उनके अतिरिक्त कोई चाय नाश्ते वाला है तो कोई मकान मालिक, कोई टिफिन सेंटर वाला है तो कभी कोई हाथ ठेले वाला। तात्पर्य यह है कि सभी आम जीवन के सामान्य लोग ही उनके कथानक के पात्र हैं। इतने भिन्न चरित्र, एवं हर दृष्टि से इतनी विविधता प्रस्तुत की है जो विविधता में एकता की मिसाल है, किन्तु किसी भी पात्र का चरित्र कमतर नहीं आँका है, सभी को आवश्यकतानुसार उचित स्थान मिला है। हर पात्र की की कुछ न कुछ खासियत दिखलाई है।
कथानक विवरण :- उपन्यास B-15B फोर्थ फ्लोर संजीव गंगवार की सुप्रसिद्ध कृति कागज़ के फूल से पहले प्रकाशित हुआ था और अपनी एक भिन्न विषय वस्तु के कारण काफी सुर्खियाँ बटोरी थी। हालाँकि लगभग मिलती जुलती विषयवस्तु को केंद्र में रख कर इस पुस्तक के आने के पश्चात विभिन्न लेखकों नें अपनी रचनाये प्रस्तुत करीं किन्तु विषयवस्तु पर सम्पूर्ण नियंत्रण, पुस्तक के माध्यम से भी पाठक को चलचित्र के सामान आभास करवा कर एक वास्तविक चित्र प्रस्तुत कर देने का जो अद्भुत कृत्य संजीव अपनी लेखनी से कर पाए व अन्य को इस विषय पर लेखन करने हेतु प्रेरित कर गए , संभवतः कोई अन्य वह कमाल उस विषय पर नहीं दिखा सका।
घटनाक्रम:-
प्रस्तुत पुस्तक का केंद्र दिल्ली शहर की वह कालोनी है जिस के विषय में कहा जा सकता है कि, क्रिश्चियन कॉलोनी मुख्य रूप से उन युवाओं का अस्थायी आशियाना है जो दिल में राज्य अथवा केंद्र की प्रशासनिक सेवा में जाने के बड़ी बड़े सपने संजो कर के इस कालोनी के अपने छोटे छोटे कमरों में जिंदगी के मूल्यवान पल गुज़रते हैं । कुछ सफल हो जाते हैं तो कुछ हताश हो कर वापस चले जाते हैं जबकि कुछ कभी न कभी सुबह तो होगी, बीतेगी काली रात की स्याही… वाली बात को मान कर वही के हो कर के रह जाते हैं ।
हंसी खुशी, उदासी प्यार, टकराहट, सुविधाओं और अभावों के बीच साल दर साल कालोनी का जीवन चलता रहता है। बीच बीच में युवाओं के जीवन के रोजमर्रा जीवन, वहां के कार्य कलाप, दिनचर्या से हट कर कुछ खास तजुर्बे भी है जैसे कि किसी लड़के का प्रेम में पड़ जाना ।
भिन्न परिवेश से आये भिन्न स्वाभाव एवं भिन्न भिन्न प्रतिभा वाले युवाओं को लेकर कथानक बुना है और दिल्ली के उस क्षेत्र का जहां कोचिंग पढने वाले अधिकांश युवा लड़के लडकिया प्रशासनिक सेवाओं हेतु परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं वहां का बेहद सजीव एवं सटीक वर्णन प्रस्तुत किया है एवं पाठक की नज़रों के सामने वही मंजर रचने में वे सफल हो गए हैं बाज़ दफा तो पढ़ते हुए वहां के माहौल में ऐसे खो से जाते हैं मानो कॉलोनी में ही आ गए है । उस परिवेश को समग्र रूप से प्रस्तुत करते हुए थोड़े आस पास के क्षेत्रों को भी उन्होंने अपने कथानक के भौगोलिक दायरे में समेटा है।
यूं तो सभी प्रतिद्वंदी ही हैं किन्तु उनके आपसी भाई चारे की, उनकी बिंदास और बेलौस युवा अवस्था की यारी का भी सुन्दर वर्णन है। क्यूंकि दिन ब दिन के हालत की पूरी तस्वीर ही सामने रख दी है फिर चाहे खाने की थाली वाली दुकान हो या टिफिन सेंटर, लिट्टी चोखा की दुकान, या फिर चाय वाले की दुकान , हर छोटी बड़ी बात को समेट लिया है। लगभग हर वो चीज़ जो आम तौर पर इस अवस्था के युवा अनुभव करते हैं उनके तजुर्बे उन्हीं की ज़ुबानी खूबसूरती से दिखाए हैं फिर चाहे उनकी पैसों की तंगी हो या फिर किसी मित्र की हलके फुल्के अंदाज़ में खिंचाई। क्रिकेट मैच, दारू पार्टी, ताश के अड्डे जमते रहते है,
मौज मस्ती के साथ साथ सामयिक विषयों पर पैनी व तीखी बहस, चिंतन एवं विचारण भी उनके बीच अक्सर चलता है। किन्तु मूल रूप से सर्वाधिक चिंतन का विषय या मुद्दा बेरोज़गारी ही है क्योंकि पुस्तक का सारा तानाबाना ही उसी वर्ग के पात्रों को लेकर बुना गया है ।
समीक्षात्मक टिप्पणी:-
• पुस्तक समसामयिक विषयों पर विचारण के साथ साथ व्यवस्था पर तंज भी करती है वह बेरोज़गारी के ऊपर हो अथवा शहर की सफाई एवं अन्य अव्यवस्था पर लगभग हर खासोआम समस्या पर विचार कर लिया गया है वह बिजली जाने की हो या तंग बस्ती की, कालोनी की गंदगी की हो, या फिर महंगाई की, युवा प्रतियोगियों के द्वारा बेशक मजाकिया एवं हल्के फुलजे लहज़े में सम्मुख रखा गया है एवं कुछ छींटाकशी भी की गई है तंज पैने हैं जो सत्ताधीशों को चुभन देने में सक्षम हैं साथ ही व्यवस्था के उपहास भी दीखते हैं।
एक बानगी देखें : “कालोनी भी हिंदुस्तान हो चली है, जो समारोह करता है, बैठकें करता है, सेमीनार करता है, बड़ी बड़ी चर्चाएँ करता है, यहाँ तक की आयोग बिठाता है। लेकिन जो काम हिंदुस्तान नहीं करता वो है किसी भी समस्या का हल ।
• सुशासन , ज़बाबदेही, समय बद्धता जैसे शब्दों के खोखलेपन पर भी युवाओं के मुख से तीखे विचार प्रस्तुत किये हैं एवं व्यवस्था को विभिन्न अवसरों पर आईना दिखलाया है । कथानक में पात्र जो कि प्रशासनिक सेवा परीक्षाओं की तैयारी कर रहे है मुखर एवं अपने समाज की अव्यवस्था की बात खुलकर रखते है ।
• युवाओं की उस अवस्था का जब कि सामान्य तौर पर वे हर किस्म का दबाव महसूस करते है उसे भूल कर कैसे पढ़ायी के साथ साथ जीवन जिया जा रहा है उस बेफिक्री भरी मस्तमौला जिंदगी का व आम परिवेश को प्रस्तुत करती उस कालोनी का सुंदर चित्रण है
• वाक्य विन्यास एवं शैली को सहज गम्य व सामान्य रखते हुए सुन्दर वाक्यांशों का भी उचित स्थान पर किन्तु सीमित प्रयोग किया गया है ।
• युवाओं की जीवन शैली को उनके रहन सहन को विशेष तौर पर उस क्रिश्चियन कालोनी के परीप्रेक्ष्य में बड़ी बेहतरी से प्रस्तुत किया गया है ।
• युवाओं की बात होने के बावजूद शिक्षात्मक अथवा उपदेशों से बच कर निकल गए हैं तथा कथानक को उबाऊ होने से बचा लिया है।
निष्कर्ष:-
युवा पीढ़ी को थोड़ा और करीब से समझने का , आम जीवन और आम आदमी की रोजाना की छोटी छोटी समस्याओं को देखने और सब कुछ भुला कर उल्लास भरी जिंदगी जीने का उनका जोश देखने का एक अच्छा स्त्रोत है। न तो सम्पूर्ण व्यंग्य है न ही कॉलेज़ की जिंदगी की मौज मस्ती दर्शाने वाली पुस्तक। कुछ गंभीरता है तो कुछ मुद्दे किन्तु बेहद सहज रूप में ।समग्र रूप से एक रोचक एवं पठनीय प्रस्तुति है ।
सविनय
अतुल्य