पुस्तक-समीक्षा – ‘वो फ़ोन कॉल’

पुस्तक-समीक्षा – ‘वो फ़ोन कॉल’

लेखिका – वंदना बाजपेयी

“लड़कियों के सपने उस कभी न खुलने वाले संदूक में उन के साथ साथ ससुराल और अर्थी तक की यात्रा करते हैं.” कड़वे सच के नश्तरों को अर्थात तीखी से तीखी बात को भी अति सौम्य भाव में पात्र के माध्यम से व्यक्त करने की अद्भुत कला की स्वामिनी है वंदना जी . हर कहानी अपने आप में भिन्न विषय ,कुछ भिन्न विचार कुछ अलग भाव संजोये हुए है ,यहाँ उल्लेख करना अनिवार्य हो जाता है की विषय वस्तु के साथ जुडी समस्याओं एवं साथ ही उनके निराकरण हेतु उपाय भी सुझाना वरिष्ट लेखिका के अनुभव एवं लेखनी पर उनके नियंत्रण का परिचायक है .उनके द्वारा कथा का घटनाक्रम कुछ इस प्रकार से व्यवस्थित कर दिया जाता है एवं उसका चित्रण इतना ज्यादा वास्तविकता के करीब होता है की वास्तविक ही प्रतीत होता है एवं पाठक पूरी तरह से उस पात्र के ही रंग में रंग जाता है. यूं तो इस कथा संग्रह की हर कहानी एक से बढ़कर एक है किन्तु कुछ कहानियों ने विशेष तौर पर ध्यान आकृष्ट किया है .

शीर्षक कथा “फोन कॉल”के विषय में बात करें तो हमारे आपके सभी के जीवन के कई सच होते है कुछ कहे कुछ अनकहे .कुछ जो सबके सामने आते है और कुछ जो अंदर ही अंदर हमें घुटने पर मजबूर कर देते है । वंदना जी की खासियत है हर कहानी में किसी न किसी अनछुए विषय को सामने लाने की .वैसे ही बहुत सशक्त तरीके से इस विषय को सामने रखा है ।शीर्षक कथा “फोन कॉल” भी एक पोशीदा यथार्थ के विषय में है , कहानी जहाँ एक ओर आजकल के बच्चों की टॉप पर पहुचने और बने रहने के सपने है इक्षाये है जो अगर टूट जाएं तो.. . और दूसरी ओर एक युवती की कहानी है जो खुद की पहचान छुपा कर जीते जीते थक चुकी है और समाज उसे उसके अंदर छुपे पुरुष को वह बाहर लाये तो स्वीकार करेगा कि नही यही उहा-पोह मानसिक तनाव से बढ़ कर अत्यंत विकराल रूप धारण कर चुकी है परिवार और दोस्तों से मिली उपेक्षा उसका अवसाद बढाने में भरपूर योगदान देते हैं इसी भय से वह कुछ कठोर कदम उठाने का विचार करती है कहानी कुछ काउंसलिंग कुछ भावनाएं और कुछ अप्रिय घटनाओं का मिश्रण है किंतु

संग्रह की कहानी “तारीफ“ के ज़रिये उन्होंने आम जन की नज़र में मामूली सी बात ‘’तारीफ” को बड़ी ही गंभीरता से सोचा एवं उनकी कलम यह आभास करवाने में पूर्णतः कामयाब हुयी की यह मामूली सी बात कही न कहीं स्त्रियों के लिए मानसिक प्रताड़ना जैसी होती है जो उन्हें धीरे धीरे भीतर से खोखला करती है . पति द्वारा गुणी एवं पूर्ण पारंगत पत्नी की तारीफ न करना , एवं वही रवैया बेटे द्वारा दोहराया जाना उसे आन्तरिक रूप से व्यथित एवं दु:खी रखता है किन्तु ऐसा क्या हुआ की स्थितियां यकायक पलट गयीं , बेटे ने मां की तारीफों के पुल बाँधने शुरु कर दिए और तारीफ की भूखी बेचारी माँ फिर सबकी सेवा खातिरदारी में जुट गयी . जानना रोचक है .नारी मन को परत दर परत खोल के सामने रख दिया है लेखिका ने.एक दूसरी कहानी सांकेतिक रूप से मोबाईल को लेकर है किन्तु इसके माध्यम से लेखिका ने मध्यम वर्गीय समाज की छोटी छोटी ख्वहिशों के बड़े बड़े सपने , अहं और स्त्रियों से जुडी कुछ वर्जनाओं को तोड़ उन्हें बंधन मुक्त हो अपनी जिंदगी जीने की आज़ादी की वकालत कथानक के द्वारा की है . नायिका पति की कमाई पर निर्भर है एक अच्छा मोबाइल लेना चाहती है किन्तु कुछ आर्थिक बाध्यताएं हैं जिनके चलते वह मोबाइल नहीं ले पाती और दकियानूसी सोच से बंधा पति उसे बाहर काम करने की इज़ाज़त भी नहीं देता .सुन्दर कथानक खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है सुन्दर वाक्य विन्यास है एवं शब्दों का चयन भी श्रेष्ट है पढियेगा ज़रूर कहानी “10500 का मोबाईल” .

“सेवईयों की मिठास” समाज में पैठ चुके साम्प्रदायिकता के ज़हर पर तीखा तंज है एवं कठोर प्रहार भी .कहानी के नायक हमीद जो पेशे से कारपेंटर है की इंसानियत की कहानी है जो साम्प्रदायिकता की बातें करने वालों के मुह पर करारा तमाचा है .वही तारीफ के सामान ही एक अन्य बुराई जिसे मामूली मान कर हम छोड़ देते है या ध्यान नहीं देते वह है महिलाओं के साथ कार्य स्थलों पर अथवा सरेआम होने वाली छेड़छाड़ जिसकी शुरुआत उन्हें घूरने से होती है . कहानी में नायिका अपने कार्यालय में ऐसी ही परिस्थिति से दो चार होती है किन्तु अंत में निर्भीकता से वह ऐसा कौन स कदम उठती है जो उसे इस परेशानी से मुक्ति दिला देता है यही बयां करती हुयी कहानी है “और कितना घूरोगे” . प्रिय बेटे सौरभ आज के सच को बयान करती कहानी है पत्रों के माध्यम से कथानक आगे चलता है पत्र , जो माँ द्वारा बेटे की उम्र के अलह अलग पड़ावों पर लिखे गए है पुत्र के बदलते स्वाभाव एवं माँ के प्रति उपेक्षा , ज़िम्मेवारियों से मुकरने जैसी स्थितियों से परिचय करवाता है किन्तु माँ फिर भी माँ है वह बेटे के लिए दुआ ही करती है . मार्मिक प्रसंग है वास्तविकता से परिचय करवाती कहानी है कुछ स्थानों पर आँखें भीग सकती है अथवा गला रुंध सकता है . सरल , सहज एवं सुन्दर यही इस पुस्तक के विषय में कहना पर्याप्त होगा .हर कहानी आप को कुछ नया सोचने के लिए विवश करेगी.

अतः पढ़िए अवश्य क्यूंकि यह तो समीक्षा है सारांश नहीं.

सादर ,

अतुल्य

01.03.2023

उज्जैन म .प्र.

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रचनाकार

Author

  • अतुल्य खरे

    B.Sc,LLB. उज्जैन (मध्य प्रदेश)| राष्ट्रीयकृत बैंक में वरिष्ठ प्रबंधक | Copyright@अतुल्य खरे/इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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