लेखिका- चंचलिका शर्मा
अयन प्रकाशन
“मन पाखी अकेला” हिंदी साहित्य प्रेमियों की सुपरिचित एवं वरिष्ट साहित्यकार चंचलिका शर्मा जो किसी परिचय की मोहताज़ नहीं , द्वारा रचित कथा संग्रह है . चंचलिका जी साहित्य जगत में एक परिचित एवं प्रसिद्ध नाम है , साहित्य की हर विधा में एक समान दखल रखती है किन्तु वर्तमान में उनका रुझान कविताओं की और अधिक देखने में आ रहा है . प्रस्तुत कथा संग्रह 13 लघु कथाओं को अपने में समेटे हुए है .संग्रह की हर कहानी एक अलग रंग लिए हुए है एवं समाज की लगभग हर पृष्ठभूमि की कहानी है आम आदमी ही उनकी कथाओं के नायक है . अपनी सामान्य रोज़मर्रा जिंदगी से जूझते हुये पात्रों को वरिष्ट कथाकार खूबसूरती से कागज़ पर उतारने में सफ़ल हुई है. जिंदगी के दर्द , उसके उतर चढाव, एवं जिंदगी के तीखे नश्तरों से चुभता-बचता हुआ आम इंसान का जीवन बखूबी निखारा गया है किन्तु इंसानियत , मानवता एवं परहित लगभग प्रत्येक कहानी का हिस्सा है . कहानियों की अंतरात्मा से झांकती हुई लेखिका के संघर्ष पूर्ण जीवन की एक झलक भी हमें कुछ कहानियों में नज़र आती है . इस संग्रह की हर कहानी में कथानक के माध्यम से पाठक को एक सकारात्मक सन्देश अवश्य देती है एवं पाठक के अंतर्मन को झिन्जोड़ देती है .
कथा संग्रह की पहली कहानी “इंसानियत की जीत” यथा नाम तथा कथा है जो की एक मिल मजदूर की इंसानियत का गरिमापूर्ण वर्णन करती है . लेखिका चंचलिका शर्मा के इस संग्रह की कथा “ अपेक्षा न थी उपेक्षा की” एक अत्यंत मर्मस्पर्शी , पाठक के अंतर्मन को , उसके दिलो-दिमाग को आज के युवाओं की अपने अभिभावकों के प्रति ओछी सोच एवं उनके प्रति अपने दायित्वों से दूर भागने अथवा एन केन प्रकारेण बचने की आधुनिक असंस्कारित सोच दर्शाती है एवं सोचने पर विवश करने वाली एवं सब कुछ सह कर औलाद को सक्षम बनाने वाली एकल माँ के दर्द को बयां करती है .
शांतिधाम की मरीचिका वृद्धाश्रम पर केन्द्रित होते हुए भी अपने अन्दर संतान द्वारा दी गयी उपेक्षा को समेटे हुए है .जहाँ पराये अपने एवं अपने पराये हो जाते है . कहानियों में भावुकता एवं आम जिंदगी प्रमुखता से दर्शायी गयी है. भ्रूण हत्या के विषय को उठाते हुए “मुझे जीने दो “ में कन्याओं को सृष्टि का रचियता बताया गया है एवम उन्हें दुनिया में लाने का संदेश है. लगभग टूटने की कगार पर पहुच चुके दाम्पत्य जीवन को कैसे सहेज लिया एवं नष्ट होने से बचाया यही बयां करती हुई कथा है “वापसी”.
स्पष्टता, सरल एवं सहज गम्य शब्दावली का प्रयोग लेखिका के इस संग्रह को सामान्य जन की पसंद बनता है . बगैर किसी अलंकारिक भाषा एवं विशेषण युक्त शब्दावली के उन्होंने अपनी बात राखी है. इस संग्रह की कहानियां विशेष तौर पर आम आदमी वह भी निम्न माध्यम वर्ग से जुडी हुई है . एवं पाठक हर कथा में स्वयं को उस से जुड़ा हुआ पाता है . हर कहानी में आम जीवन का यथार्थ ही बखान किया है , रूमानियत एवं ख्वाबों की दुनिया से दूर सभी कथाएं वास्तविकता के धरातल पर ही जन्म लेती एवं पनपती है. समाज की बुराइयों को भी बहुत सुन्दरता एवं बारीकी से उकेरा है चाहे बात इसी संग्रह की एक और कथा “रिश्ते” की करें जिसमें लेखिका ने बड़ी ही खूबसूरती से बतलाया है की मज़हब से परे भी रिश्ते बन सकते है किन्तु अधिक आवश्यकता है उन्हें प्यार से सींचने एवं सहेजने की. वहीँ मानवता की प्रतिमूर्ति से साक्षात्कार करवाती कथा है “सूने चमन की बहार” जो एक माँ के मातृत्व को किसी अनाथ पर न्योछावर करने की कथा है.
”वादा रहा” एक नवयुवक के अंतर्द्वंद की कथा है जो भावनाओं के ज्वार भाटे में डूबता-उतराता अन्ततोगत्वा अपने दिल की सुनता है किन्तु तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होती है वैसे यह एक प्रेम त्रिकोण कथा भी कही जा सकती है. किन्तु इसमें भी मूलतः बात मानवता का धर्म निभाने की ही है . वही “ एक रुका हुआ फैसला” वर्तमान का यथार्थ सामने रखती है जहाँ मृत्यु से वसीयत अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है एवं दर्शाती है की कैसे खून के रिश्ते बेमानी हो जाते है.इस कथा संग्रह की शीर्षक कथा “मन पाखी अकेला” अपने आप में सद्भावना , मित्रता , दर्द ख़ुशी समेटे हुए एक अद्भुत कथा है जिसमें दो परिवारों की खुशियाँ कैसे क्रमश: कराल काल के गाल में समां जाती है और समृद्ध एवं सक्षम होते हुए भी सभी पात्र मात्र मूक दर्शक बने रह जाते है. अन्ततोगत्वा वरिष्ट लेखिका खूबसूरती से कथानक का सुखांत करने में सफल हुई है
कहानियों को जैसा मैंने समझा, समीक्षा के रूप में प्रस्तुत है,
शेष गुणी पाठक जन स्वयं पढ़ कर निर्णय लें , किन्तु पढ़ें अवश्य
सादर,
अतुल्य
08.02.2023