पुष्प संदेश

विखराता सौरभ सुगंध मैं

जोर – शोर से खिला हुआ।

काँटों से भी मिला हुआ।।

अभिलाषा मेरी यह है, सबको सुख दे जाने को

शांति सौख्य सौहार्द बढ़ाकर, स्वयं ही मिट जाने को।

मिला जितना जग से मुझको, उतना जग में लौटाने को

अंतर बाहर सम है मेरा, क्या शेष बचा छिपाने को।।

तन न्योछावर परहित में

जब से ये सिलसिला हुआ।

काँटों से भी मिला हुआ।।

मर्यादा में रहकर मैं, मर्यादित जीवन जीता हूँ

गले लगाता अरि को भी, जीवन भर विष पीता हूँ।

सुख – दुख आता-जाता है, कभी नहीं मैं रीता हूँ

परिचायक संयोग का मै, प्रेम का धागा सीता हूँ।।

त्याग भावना है सर्वोपरि

कभी न जग से गिला हुआ।

काँटों से भी मिला हुआ।।

खुश हूं अर्थी पर भी मै, चाहे प्रतिमा पर चढ़ जाऊँ

गुँथ प्रेमिका के अलकों में, प्रेमीजन को ललचाऊं।

आकर्षित कर रूठे प्रीतम को, पथ पर उसके इठलाऊं

समभाव लिए मै जीता हूं, बस केवल खुशबु फैलाऊँ।।

नहीं किसी से बैर भाव

कभी न दुख से हिला हुआ।

काँटों से भी मिला हुआ।।

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • विनोद कुमार 'कवि रंग'

    नाम - विनोद कुमार उपनाम - कविरंग पिता - श्री वशिष्ठ माता - श्रीमती सावित्री जन्म तिथि - 15 /03 /1973 ग्राम - पर्रोई पो0-पेड़ारी बुजुर्ग जनपद - सिद्धार्थनगर (उ0 प्र0) लेखन - कविता, निबंध, कहानी प्रकाशित - समाचार पत्रों मे (यू0 एस0 ए0के हम हिंदुस्तानी, विजय दर्पण टाइम्स मेरठ, घूँघट की बगावत, गोरखपुर, हरियाणा टाइम्स हरियाणा तमाम पेपरों मे) Copyright@विनोद कुमार 'कवि रंग' / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

Total View
error: Content is protected !!