पिया रंगे न मोरी चुनरिया

फागुन के दुख का, कहौं मैं सखी।

पिया रंगे न मोरी चुनरिया हो।।

बाली है मोरी उमरिया,

रंग है गोरा कोरी चुनरिया,

होली के – 2  उड़े फुहार सखी।

                  पिया रंगे………….

खोरन – खोरन छैला घूमय,

इठलाती यौवन का ढूँढ़य।

पड़ जाये न मो पे नजरिया सखी

                  पिया रंगे………….

भांग का घोटा लगा के पीवे,

फाग के राग म झूम के नाचे।

हाय ! समझे न मोरी दरदिया सखी

                   पिया रंगे………….

पीके सुरापान वो मस्त मलंग है,

करे जोर जोरी वो मेरे संग है।

हौले-हौले से पकड़े कलईया सखी,

पिया रंगे है मोरी चुनरिया हो।।

फागुन के सुख का, कहौं मैं सखी।

पिया रंगे है मोरी चुनरिया हो।।

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रचनाकार

Author

  • प्रतिभा दुबे (अश्वी)

    प्रतिभा दुबे 'आश्वी' जन्म - 03/10/1992 जन्म स्थान - रीवा पिता नाम -श्री बी. डी. दुबे माता नाम - श्रीमती अनुराधा दुबे शिक्षा - ए0म0 (हिन्दी साहित्य), बी0एड0 व्यवसाय - शोधार्थी (अ 0 प्र0 सि0 वि0 वि0 रीवा (एम0पी0)/ ©प्रतिभा दुबे (अश्वी)

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