चमचम कटोरी में
दूध-भात खाता है
बाअदब पुकार कर
पिंजड़े का सुगना
फिर राम-नाम गाता है !
धोंसले की झंझट/ न चिन्ता है पेट की
आँधी ,बरसात हो /कि दोपहरी जेठ की
भींगना न तपना है
राम-राम रटना /या पलक मूँद झिंपना है!
खो गयी है चहक कहीं
डाल-डाल उछल-कूद प्रतिबंधित
स्वप्न बन गयी है सैर नभवाली
बालियों के झूलों पर झूलना
सेमल के फूल देख
सुध-बुध भी भूलना
भूल गया अब सब कुछ
सुगने की दुनिया है
पिंजड़े में सिमट गयी !
मालिक के मोद/ और महल की सजावट का
उपादान भर सुगना
देख भी सकेगा क्या / अब सूरज का उगना ?
चोंच मार/ तीलियों को तोड़ने का यत्न नहीं
स्वामी के इंगित पर/ दोहा दुहराता है
चीख़-चीख़ चैन महल का/ चुगने की बजाय
पेट पालने ख़ातिर/खिदमत में गाता है !!
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