नैन नीर में मसि मिलाकर हमने लिख दी प्रिय को पाती।
भावो को लिपिबद्ध सजाकर बैरंग भेजी प्रिय को पाती।।
मन पक्षी विहरत अनन्त तक दरस न प्रिय की पाये,
किस अपराध का दण्ड दे रहे सुधि मेरी बिसराये,
मिलन पीर अब प्राण लेत है धधकत अविरल मेरी छाती।।
भावों को०
उषा काल की देख लालिमा ढाढ़स देती मन को,
सूर्य डुबे जग सूना लागे जारि मरूं इस तन को,
नागिनि सेज डसे रजनी भर सिलवट चादर की बतलाती।।
भावों को०
छप्पन भोग नीक न लागे काली रैन डरवावै,
सूखि के कांटा मैं विरहिन भइ काहे न आई बचावै,
सासु ननद की विष भरी बोली रो रो करके मैं सह जाती।।
भावों को०
कंगन खनक खनक पिउ बोले पपिहा शोर मचाये,
अब तो घर आजा परदेशी मुझसे रहा न जाये,
सखियां सभी भई लड़िकोरी मेरे हिय में हूक सी आती।।
भावों को०
पत्र में रिक्त जगह छोड़ी हूं उसको ध्यान से पढ़ना,
विरह वेदना बहुत बेधती पढ़ते ही चल देना,
आशा दीप घिरे अंधड़ में स्वप्न शेष देखत दिन राती।।
भावों की०