पदचिह्न बनाते बढ़ता चल, तू कालचक्र के पथ पर
पूण्यकर्म तू करता चल, निःस्वार्थ भाव मन रखकर
देखता जग रह जाए रे
हार के मनवा काहें तू पछताए रे
हार के मनवा काहें तू पछताए रे ……..
पर्वत तोड़े राह बनाए आखिर वो भी थे मानव
कांटों के जो सेज पे सोए खुशियां लाने को मानव
मोड़ आंधियों के मुंह प्यारे -2
क्यूं बैठा रोता जाए रे
हार के मनवा काहें तू पछताए रे
हार के मनवा काहें तू पछताए रे ……..
ज्ञानवान हम भाग्यवान जो मानव योनि में जन्म लियो
उत्तम कर्मों के फल से ही प्रभु ने हमको मान दियो
ईर्ष्या द्वेश कपट लिए मनवा-2
काहें समय गंवाया रे
हार के मनवा काहें तू पछताए रे
हार के मनवा काहें तू पछताए रे ……..
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