अन्तर्द्वंदों के शिखर पर खड़ा सा मौन हूँ मैं।
न जाने कौन हूँ मैं……
गहन तिमिरान्ध में प्रकाश हूँ मैं,
छलकते आंसुओं की आस हूँ मैं
गृहस्थ योगी यती संन्यास हूँ मैं,
विरह कातर अधर की प्यास हूँ मैं।
किसकी ललचाई दृगन की भौंन हूँ मैं।।
न जाने कौन हूँ मैं…….
सृष्टि का पालक सृजक संहार हूँ मैं,
सूक्ष्मतम से ब्योम का आकार हूँ मैं,
नाव माझी नदी और पतवार हूँ मैं,
प्रकृति में प्रस्वास का संचार हूँ मैं।
सर्व समरथ सिद्ध हूँ पर तृष्णा वन मृग छौन हूँ मैं।।
न जाने कौन हूँ मैं……
भूख से ब्याकुल उदर की पीर हूँ मैं,
स्वेद के रंग में रंगी प्राचीर हूँ मैं,
जला दे मृतचीर ऐसा नीर हूँ मैं,
सूर्य शशि मणि दीप सागर छीर हूँ मैं।
है विराट स्वरूप मेरा फिर भी लगता बौन हूँ मै।।
न जाने कौन हूँ मैं……
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