मुझे किसी बात का न गुरूर हो पाये
दयाल तेरे नाम का बस शुरू हो जाये
न दुनिया की चाह है न चाहत है अमीरी का
मुहब्बत तुमसे ही मालिक बस भरपुर हो जाए
तेरे कदमो में पडा रहु ऊम्र भर मेरे मालिक
नशा तेरे ही नाम अगर हुजूर हो जाए
कर्म कुछ ऐसा हो दाता तेरे दरबार से
दर से तेरे हम न कभी दुर हो जाए
तेरे दर से अब तलक कोई खाली नही गया
रहम कर मेरे मौला न हम मगरूर हो पाये
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